Thirukalukundram.in

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श्री थिरिपुरा सुंदरी अम्मान श्री वेढागिरीश्वरर मंदिर तिरूकल्लीकुण्ड्रम - पैकशी थीर्थम




श्री वेढागिरीश्वरर मंदिर तिरूकल्लीकुण्ड्रम - पैकशी थीर्थम !

परमेश्वर : श्री वेदगिरीश्वरर मंदिर   (पहाड़ मंदिर )

देवी : श्री थिरुपुरसुन्दरी सुंदरी

परमेश्वर : श्री भक्था वचालेस्वरार (Big Temple)  

पेड़ : केले का पेड़. (केले का पेड़)

थीर्थम : सांगू थीर्थम



श्री वेढागिरीश्वरर मंदिर तिरुक्कलुकोंड्रम टेम्पल हिस्ट्री - पक्षी तीर्थ , प्रसिद्ध शिव मंदिर




श्री थिरुपुरसुन्दरी सुंदरी अमन टेम्पल हिस्ट्री


     ेन्नई के चेंगलपेट्ट से 13 किमी दूर स्थित तिरूकल्लीकुण्ड्रम पक्षी तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। तिरूकल्लीकुण्ड्रम स्थित पहाड़ी पर भगवान शिव का मंदिर अत्यंत दर्शनीय है। दूर से ही इस पर्वत की रम्यता झलकती है। तिरूकल्लीकुण्ड्रम नाम कलगु यानी गिद्धों की वजह से है। मान्यता है कि भगवान शिव के दर्शनार्थ हर रोज इस पर्वत पर गिद्धों का जोड़ा आता था। भगवान शिव को भोग लगा प्रसाद इनको खिलाया जाता था। मंदिर की बनावट तिरूवण्णामलै के अरूणाचलेश्वरर मंदिर की तरह है। इस पर्वत को पवित्र माना गया है और इसकी भी परिक्रमा की जाती है।संरचना व इतिहास मंदिर में स्थापित शिवलिंग भगवान वेदगिरिश्वरर का है। मंदिर दो हिस्सों में है। पहाड़ी की चोटी पर वेदगिरिश्वरर विराजित हैं और तलहटी में मां पार्वती की तिरूपुरसुंदरी अम्मन के रूप में पूजा होती है। तलहटी से वेदगिरिश्वरर की चढ़ाई शुरू होती है। इस भव्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर चार मंजिला गोपुरम है। मंदिर 265 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। इस पर्वत पर कई तरह की औषधियां भी पैदा होती हैं मंदिर के आस-पास 12 तीर्थ हैं। गिद्धों की अनूठी कहानी की वजह से इसका ऎतिहासिक नाम तिरूकलगुकुंड्रम था जो बाद में तिरूकल्लीकुण्ड्रम हो गया।

मिस्र के गिद्धों की भांति इस पर्वत पर गिद्धों के जोड़ों के आने की परम्परा थी। पर्वत पर चिन्हित एक जगह पर मंदिर के पुजारी इन गिद्धों को दोपहर का भोजन कराते थे जिसमें चावल, गेहूं, घी और शक्कर होता था। पिछले एक दशक से इन गिद्धों का आना बंद हो गया है। कहा जाता है कि पापियों की संख्या बढ़ जाने की वजह से इनका आना रूका है अंतिम बार जोड़े रूप में गिद्धों को 1998 में देखा गया। उसके बाद केवल एक गिद्ध यहां आता था। गिद्धों को लेकर प्रचलित किंवदंती के अनुसार ये गिद्ध वाराणसी में गंगा में डूबकी लगाकर वहां से उड़कर यहां आते। दोपहर को मंदिर के पुजारी उनको भोजन कराते। फिर वे रामेश्वरम जाते और रात चिदम्बरम में बिताते। अगली सुबह उड़कर वे फिर वाराणसी जाकर गंगा स्नान करते।पौराणिक कथा कथा के अनुसार सदियों पहले चार गिद्धों के जोड़े थे। ये चार जोड़े आठ मुनियों के प्रतीक थे जिनको भगवान शिव ने शाप दिया था। हर एक युग में एक जोड़ा गायब होता चला गया।

इस स्थल को उर्तरकोडि, नंदीपुरी, इंद्रपुरी, नारायणपुरी, ब्रह्मपुरी, दिनकरपुरी और मुनिज्ञानपुरी नाम से भी जाना जाता था। किंवदंती के अनुसार भारद्वाज मुनि ने भगवान शिव से दीर्घायु का वरदान मांगा ताकि वे चारों वेदों का अध्ययन कर सकें। भगवान शिव उनके समक्ष प्रकट हुए और उनको वेद सीखने का वरदान दिया। शिव ने इसके लिए तीन पर्वतों का निर्माण किया जो ऋग, यजुर व साम वेद के प्रतीक है। जबकि अथर्ववेद रूपी पर्वत से वे स्वयं प्रकट हुए। शिव ने हाथ में मिट्टी लेते हुए समझाया कि प्रिय भारद्वाज वेदों का अध्ययन मेरे हाथ की मिट्टी और खड़े पर्वतों की तरह है। अगर वेद सीखने के लिए तुम दीर्घायु होना चाहते हो लेकिन यह समझ लो कि सीखने का क्रम कभी समाप्त नहीं होता और इससे मोक्ष की प्राप्ति भी नहीं होती। भगवान ने उपदेश दिया कि कलियुग में भक्ति से ही मोक्ष संभव है। यह मान्यता है कि वेदगिरिश्वरर का जो मंदिर जिस पर्वत पर है वह वेदों का स्वरूप है। इस वजह से शिव की आराधना वेदगिरिश्वरर के रूप में होती है जिसका आशय वेद पर्वतों के अधिपति हैं पौराणिक वर्णन चार शैव नयन्मार संतों अप्पर, सुंदरर, माणिकवासगर व तिरूज्ञानसंबंदर ने इस मंदिर के दर्शन किए और भगवान की स्तुति की। इन चारों संतों को समर्पित एक सन्निधि यहां है। इनके अलावा अरूणगिरिनाथर ने भी तिरूपुगल में मंदिर की भव्यता का वर्णन किया है। भगवान शिव के मंदिर में होने वाले सभी अनुष्ठान इस मंदिर में होते हैं। पूर्णिमा के दिन हजारों की संख्या में लोग पूरे पर्वत की परिक्रमा लगाते हैं।

श्री वेदगिरीश्वरर प्रार्थना करना वरदान मिलेका

      पवित्र स्थान पश्चिम में सोमसकंथर ,ब्रम्हा , तिरुमाल उत्तर दिशा में योग दक्षिणामूर्ति, मार्कन्डेयर दक्षिण में नांथिकेश्वरर , सांडिकेश्वरर भगवान आकृतियाँ मंदिर अंतर मे उत्कीर्ण है . भगवान शिव की आज्ञा से एक बार नंदी ने तीन पर्वत स्थापित किए, उनमें से एक था 'वेदगिरि'। वेदगिरि एक छोटी पहाड़ी है। इसके नीचे एक छोटा सा शहर है, जिसका नाम है 'तिरुक्कुलुक्कुन्नम्' यानी 'पक्षी तीर्थ'। पक्षी तीर्थ वेद गिरि पहाड़ी के एक ओर समतल स्थान पर है। यहां दिन में 11 बजे से दोपहर 2 बजे के बीच पक्षियों के दर्शन होते हैं। मान्यता है कि ये पक्षी कैलाश पर्वत से आते हैं

श्री थिरुपुरसुन्दरी सुंदरी अमन

      श्री थिरुपुरसुन्दरी सुंदरी अम्मन सूयमंबु. श्री थिरुपुरसुन्दरी सुंदरी अम्मन अष्ट कंडम यह भी आठ इत्र से ऐ अम्मन बनाया. श्री थिरुपुरसुन्दरी सुंदरी अम्मन गरदन मे श्री चकरम पहनने हैं . श्री थिरुपुरसुन्दरी सुंदरी अम्मन का स्पेशल - एक साल मे सिर्फ तीन दिन आडी पूरम ,पंकुनि वुत्तिरम , नवरातिरि नवमी को थिरुपुरसुन्दरी सुंदरी अम्मन अभिषेक करेग. अन्य दिन मे श्री थिरुपुरसुन्दरी सुंदरी पैर को अभिषेक करेग. आडी महीना मे श्री थिरुपुरसुन्दरी सुंदरी को दस दिन को स्पेशल पूजा करेग. मार्कन्डेयर उस शंख कोलेकर श्री वेदगिरीश्वरर अभिषेक किया.

रुद्रकोटि शिवमंदिर:

     पक्षी तीर्थ में ही रुद्रकोटि शिव मंदिर स्थित है। भगवान शिव-पार्वती के इस मंदिर में यहां पार्वती जी को अभिरामनायकी कहते हैं। मंदिर में ही शंकरतीर्थ नाम का सरोवर है। मान्यता है कि जब बृहस्पति, कन्या राशि में प्रवेश करते हैं तब इस सरोवर में एक शंख उत्पन्न होता है।

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